सन् १८९६ ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है।तत्र दिनांक- ०७ सितम्बर सन् १९०५ ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक -२४ जनवरी सन् १९५० ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!
4 comments:
जो जानकारी आपने दिया है उसके लिये 'शुक्रिया'। आपके अगले लेख का इन्तज़ार रहेगा । आभार सहित ......
जो जानकारी आपने मेरे कहने पर दिया है उसके लिये 'शुक्रिया' शब्द बहुत ही छोटा है। मुझे आपके अगले लेख का इन्तज़ार रहेगा। आभार सहित......
'वंदे मातरम्' देश-प्रेम का गीत है,प्रत्येक देश के राष्ट्रगीत में स्वाभिमान होता है, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढियां सर्वस्व न्यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्द होते थे ‘वंदे मातरम्...!
बढिया जानकारी के लिये शुक्रिया।
"वंदे मातरम"
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