यह भी पता चला है कि यह सूचना राष्ट्रीय सूचना परिषद् के सचिवालय तक पहुँचा दी गई थी तत्पश्चात् नेवी और कोस्ट गार्ड को भी इसके बारे में सूचित कर दिया गया था । महाराष्ट्र को भी सलाह के रूप में यह खबर पहुँचाई गई थी मगर लगता यह है कि सूचना की गम्भीरता को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया, अब स्पष्टीकरण दिये जा रहें हैं कि इस प्रकार की सूचनाएं तो अक्सर आती रहती हैं । तर्क देनें के लिये तो यह भले ही ठीक लगे पर ऐसी गम्भीर सम्भावनाओं को क्या नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है ? अगर हम सतर्क होते तो क्या यह मामला आगे बढ पाता ? हमें यह देखना है अब कि क्या भविष्य में हमारी सतर्कता बढेगी ? या हम गम्भीर " संभावनाओ " को इसलिये नज़र-अंदाज़ कर देंगे क्योंकि वह महज़ संभावनाएं हैं ?
Monday, 1 December 2008
अब पछ्ताये होत क्या ......
एक खबर के अनुसार आतंकी हमले के लगभग एक सप्ताह पूर्व, 19 नवम्बर को एक खुफ़िया एजेंसी ने एक "टॉप सीक्रेट" ( अत्यन्त गुप्त ) सूचना भेजी थी कि मुम्बई पर हमला समुद्र के रास्ते से किये जानें की योजना बनायी जा रही है । यह भी कहा गया था कि हमला कुछ ही दिनों में हो सकता है । खुफ़िया सूचना में यहाँ तक कहा गया था कि हमलावर मछुवारों के ट्रालर में आयेंगे । देखा जाए तो सूचना सही भी निकली ।
यह भी पता चला है कि यह सूचना राष्ट्रीय सूचना परिषद् के सचिवालय तक पहुँचा दी गई थी तत्पश्चात् नेवी और कोस्ट गार्ड को भी इसके बारे में सूचित कर दिया गया था । महाराष्ट्र को भी सलाह के रूप में यह खबर पहुँचाई गई थी मगर लगता यह है कि सूचना की गम्भीरता को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया, अब स्पष्टीकरण दिये जा रहें हैं कि इस प्रकार की सूचनाएं तो अक्सर आती रहती हैं । तर्क देनें के लिये तो यह भले ही ठीक लगे पर ऐसी गम्भीर सम्भावनाओं को क्या नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है ? अगर हम सतर्क होते तो क्या यह मामला आगे बढ पाता ? हमें यह देखना है अब कि क्या भविष्य में हमारी सतर्कता बढेगी ? या हम गम्भीर " संभावनाओ " को इसलिये नज़र-अंदाज़ कर देंगे क्योंकि वह महज़ संभावनाएं हैं ?
यह भी पता चला है कि यह सूचना राष्ट्रीय सूचना परिषद् के सचिवालय तक पहुँचा दी गई थी तत्पश्चात् नेवी और कोस्ट गार्ड को भी इसके बारे में सूचित कर दिया गया था । महाराष्ट्र को भी सलाह के रूप में यह खबर पहुँचाई गई थी मगर लगता यह है कि सूचना की गम्भीरता को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया, अब स्पष्टीकरण दिये जा रहें हैं कि इस प्रकार की सूचनाएं तो अक्सर आती रहती हैं । तर्क देनें के लिये तो यह भले ही ठीक लगे पर ऐसी गम्भीर सम्भावनाओं को क्या नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है ? अगर हम सतर्क होते तो क्या यह मामला आगे बढ पाता ? हमें यह देखना है अब कि क्या भविष्य में हमारी सतर्कता बढेगी ? या हम गम्भीर " संभावनाओ " को इसलिये नज़र-अंदाज़ कर देंगे क्योंकि वह महज़ संभावनाएं हैं ?
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1 comment:
सही कहा है आपने ...
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