Wednesday 6 February, 2008

मनसे का गुंडाराज़

'आमची महाराष्ट्र' के नाम पर राज ठाकरे की पार्टी 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना' के समर्थकों द्वारा जारी हिंसा , क्षेत्रवाद की कटारी से राष्ट्र को विखण्डित करने का एक कुत्सित प्रयास है।इन उन्मादी लोगों को न तो देश का इतिहास ज्ञात है और न ही भूगोल।
क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रसित ये विघटनवादी तत्व जिन्हें "भइये" कह कर अपने से बाहरी मानते हैं उन्हीं भैय्या लोगों ने कभी 'नाना साहब पेशवा' या फिर 'रानी लक्ष्मीबाई' के साथ अपने प्राणों को उत्सर्ग किया था । महाराष्ट्र के इन असमाजिक तत्वों को कदाचित् यह भी याद नहीं होगा कि छत्रपति शिवाजी का राजतिलक करने से जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने इन्कार कर दिया था तब इन्हीं "भइया" के पूर्वजों ने अपने रक्त से उस वीर मराठा का राज्याभिषेक किया था । शिवाजी का सुयश जन-जन तक पहुँचाने वाले महाकवि 'भूषण' उत्तर प्रदेश ( कानपुर ) के ही थे। मुगल सिपहसालार से शम्भाजी के प्राण बचानेवाला पुरोहित 'तीर्थराज प्रयाग' ( इलाहाबाद ) का था ।

क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रस्त उन्मादियों ने ओछी टिप्पणी करते समय यह भी नहीं सोंचा कि उत्तर प्रदेश के निवासियों को हिन्दुस्तानी भी कहा जाता है । 'आत्माराम गोविन्द खेर' उत्तर प्रदेश में स्पीकर रह चुके हैं । उत्तर प्रदेश के निवासियों ने तो इन्हें कभी भी बाहरी नहीं माना । सन् 1916 ई० के कॉग्रेस अधिवेशन में लखनऊ आने पर 'बाल गगांधर तिलक' को जिन्होंने अपने कंधों पर उठाया था वह भी "भइये" ही थे और इन भैय्या लोगों ने कभी भी 'बाल गगांधर तिलक' को बाहरी तो नहीं समझा ।

आज जब इंटरनेट एवम् संचार के अन्य माध्यमों से 'ग्लोबल विलेज' की बात हो रही है तब क्या राज ठाकरे, बाला नन्दगावोकर, शिशिर शिंदे, वसन्त गीले इत्यादि उन्मादियों को यह फिर से याद दिलाना पड़ेगा कि "आमची मुम्बई" को कभी पुर्तगाल के राजा ने अपनी बेटी कैथरीन की शादी के समय इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय को दहेज़ में दिया था तथा कालान्तर में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे 'पट्टे' पर ले लिया था । याद रहे - यह मुम्बई हमारी भी है, हमारे पूरे देशवासियों की है ।