Monday 28 January, 2008

वन्दे मातरम्....

'वन्दे मातरम्' गीत के पहले दो अनुच्छेद सन् 1876 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में लिखे थे। इन दोनों अनुच्छेदों में किसी भी देवी -देवता की स्तुति नहीं है , इनमें केवल मातृ-भूमि की वन्दना है । सन् १८८२ ई० में जब उन्होंने 'आनन्द- मठ' नामक उपन्यास बॉग्ला भाषा में लिखा तब इस गीत को उसमें सम्मिलित कर लिया तथा उस समय उपन्यास की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने इस गीत का विस्तार किया परन्तु बाद के सभी अनुच्छेद बॉग्ला भाषा में जोड़े गए। इन बाद के अनुच्छेदों में देवि दुर्गा की स्तुति है ।
सन् १८९६ ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है।तत्र दिनांक- ०७ सितम्बर सन् १९०५ ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक -२४ जनवरी सन् १९५० ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।


वन्दे मातरम् !
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्

सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!

Saturday 26 January, 2008

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ....

जय हिंद ! आज गणतंत्र दिवस है । आप सभी को बधाई । खेद है कि अस्वस्थ होने के कारण बहुत दिनों के बाद आप सब से रु -ब - रु हो रहा हूँ । आइये , एक बार फिर से राष्ट्र को नमन करें । अपने आन -बान - शान के प्रतीक तिरंगे को याद कर लें ।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ........

अपने राष्ट्र ध्वज में तीन रंग होने के कारण इसे तिरंगा भी कहा जाता है । इसमें समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं जिसमे गहरा केसरिया रंग सबसे ऊपर ,सफ़ेद रंग बीच में तथा हरा रंग सबसे नीचे है । सफ़ेद पट्टी के बीचों बीच में नीले रंग का चक्र है । इस चक्र का प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है । इस चक्र का व्यास सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है तथा इस में चौबीस तीलियाँ हैं । राष्ट्र ध्वज की लम्बाई - चौड़ाई का अनुपात ३ :२ है । भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का यह प्रारूप तत्र दिनांक -२२ जुलाई , सन् १९४७ ई को अपनाया था ।

डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन , जो भारत के प्रथम उप - राष्ट्रपति बने , उन्होंने राष्ट्र ध्वज के रूप में अपनाये जाने वाले इस तिरंगे का सम्पूर्ण अर्थ बताते हुए कहा - केसरिया रंग की पट्टी हमारे कार्य के प्रति उत्साह एवं समर्पण की भावना को प्रदर्शित करता है । बीच का सफ़ेद रंग प्रकाश का प्रतीक है , जो सच्चाई के मार्ग को दिखाता है और हमारे अच्छे आचरण का प्रतीक है । हरा रंग हमारे देश की मिट्टी से हमारे संबंध को प्रकट करता है , यह हमारे देश के हरे -भरे पौधों से हमारे संबंध को दर्शाता है जिस पर सभी का जीवन निर्भर है तथा सफ़ेद पट्टी के मध्य में बने नीले रंग का चक्र हमारी गति , प्रगति का द्योतक है । यह शांतिपूर्वक परिवर्तन का भी सूचक है ।

सरकारी तौर पर जो राष्ट्र ध्वज प्रयोग किया जाता है अमूमन वह खादी का बना होता है । ( कभी -कभी`रेशम ` का भी प्रयोग होता है) । भारतीय ध्वज संहिता ( जो कि तत्र दिनांक -२६ जनवरी सन् २००२ ई० से लागू है ) के अनुसार आम नागरिक , निजी संस्थाओ तथा शिक्षण संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है परन्तु राष्ट्रीय प्रतिष्टा के अनादर की रोकथाम तथा इस विषय से संबंधित अन्य व्यवस्थाओं का पालन करना होगा । राष्ट्र ध्वज को फहराने के नियम का पालन न करना दंडनीय अपराध के तहत आता है ।
शोक के समय राष्ट्र ध्वज को आधा झुकाया जाता है परन्तु स्वतन्त्रता दिवस , गणतंत्र दिवस आदि राष्ट्रीय पर्व के दौरान यदि ऐसी घटना घटती है तो राष्ट्रध्वज को झुकाना वर्जित है । यदि इन दिनों किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु होती है तो मात्र उस इमारत या घर पर ध्वज को झुकाया जा सकता है लेकिन शव के उस घर या इमारत से निकलने के बाद फिर से ध्वज फहरा दिया जाता है । संबंधित व्यक्ति की अर्थी या ताबूत पर ध्वज को डाला जाता है लेकिन न तो राष्ट्रध्वज को जलाया जा सकता है और न ही उसे दफनाया जा सकता है ।

अपना राष्ट्रध्वज उत्तरी एवम् दक्षिणी ध्रुव पर ही नहीं वरन विश्व की सबसे ऊँची चोटी माउन्ट एवरेस्ट पर भी फहराया जा चुका है । सन् १९७१ ई० में अपोलो -१५ के माध्यम से यह अंतरिक्ष में भी यह जा पहुँचा पुनः विंग कमांडर राकेश शर्मा ने अपनी अंतरिक्ष उड़ान में इसे फिर से लहराया ।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ...
झंडा ऊँचा रहे हमारा .....

जय हिंद ...........