Tuesday 26 May, 2009

यह क्या हो रहा है ...?


यह क्या हो रहा है...? किसका गुस्सा किस पर उतारा जा रहा है? जिस शहर में रहते है वहीं पर उपद्रव करना, सरकारी सम्पत्ती को नुकसान पहुँचाना, लोगों के घरों के दरवाजों को तोड़ देना, गलियों में लगे बल्ब और ट्यूबराडों को नष्ट करना, पेट्रोल पम्प, ए टी एम आदि को क्षतिग्रस्त करना, किसी अच्छे-भले आदमी की कार को जला कर राख कर देना ही क्या धार्मिकता है? कितने शर्म की बात है यह ! राष्ट्र की सम्पत्ति नष्ट हो रही है। बेगुनाह लोग मर रहे है और राजमार्गों पर यातायात दुर्लभ हो रहा है। ऐसे में राज्य सरकार कर क्या रही है? प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाये रखना, अशान्ति की स्थिति में त्वरित कार्यवाही करके पुनः स्थिति को सामान्य करना राज्य सरकार का ही दायित्व है मगर किसी समुदाय विशेष के हितों का नारा लगवा कर समाज को धर्म के नाम पर बाँटने वाले ये "नेतागण" भारत के नागरिकों का हित नहीं सोंच पाते हैं तो फिर जनता-जनार्दन इन पर विश्वास कैसे करे? मैंने अपनी आखों से देश का विभाजन का दौर तो नहीं देखा परन्तु अहसास करता हूँ कि कुछ ऐसा ही रहा होगा! लगता है कि मैं साठ-बासठ साल पहले के युग में पहुँच गया हूँ या फिर किसी जंगल में। वैसे कहते हैं कि 'जंगलराज ' के भी कुछ कायदे -कानून होते हैं परन्तु यहाँ तो ..........

क्या मेरे देश को किसी कि नज़र लग गयी है ?

Sunday 17 May, 2009

जय हो मतदाता ...! जय हो लोकतंत्र .....!!


लोकतंत्र की जीत पुनः हुई। एक बार पुनः मतदाता ने सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में राजा वही है। सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में वोट की चोट भी घातक होती है। जो भी जनता की अवहेलना करता है, उसकी हवा निकाल देनें में 'लोकतंत्र का राजा' अभी भी सक्षम है। मतदाता नें सिद्ध कर दिया कि "हम भारत के लोग" समझदार हैं तथा सही समय पर सही निर्णय लेना जानते हैं। इस जनादेश का पूर्वानुमान लगानें में बड़े -बड़े राजनीतिक विश्लेषक ( और तथाकथित ज्योतिषी भी ) धराशाई हो गए। ऋषिओं ने सत्य ही कहा है " नृपस्य चित्तम् ..... दैवो न जानति कुतो मनुष्यः ।।"

इस जनादेश से मतदाता ने क्षेत्रीयता पर भी लगाम कसा। जयललिता, चन्द्र बाबू नायडू, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान जैसे नेता अब किंग-मेकर की स्थिति में नहीं रहे . अब जनता स्वयं ही किंग-मेकर भी है और किंग तो है ही। वस्तुतः छोटे दलों का दम्भ ही उन्हें ले डूबा। मायावती का दर्प भी विदीर्ण हो गया ( अब इस लोक सभा में वह प्रधान - मंत्री बनने की शर्त नहीं थोप सकतीं )। वामपंथियों ने भयादोहन करनें की राजनीति कर के मतदाता का विश्वास खो दिया। जनता ने यह भी सिद्ध कर दिया कि वह लालकृष्ण आडवानी को न तो मजबूत नेता मानती है और न ही भारतीय जनता पार्टी के द्वारा निर्णायक सरकार चला पाने पर उसे तनिक भी भरोसा है।

कांग्रेस ने "जय हो" के नारे के साथ अपनें चुनाव अभियान का श्रीगणेश किया था अब संप्रग को चाहिए कि वह इस जनादेश का आदर करे और विकास के पथ पर त्वरित गति से राष्ट्र को आगे बढाती जावे। राजनीति के नाम पर जनता से किसी भी प्रकार की गडबडी से बचे तभी ठीक रहेगा अन्यथा वोट की चोट घातक ही नहीं संघातक भी होती है। याद रहे - जय मतदाता, जय लोकतंत्र, जय हिन्द ...!