यह क्या हो रहा है...? किसका गुस्सा किस पर उतारा जा रहा है? जिस शहर में रहते है वहीं पर उपद्रव करना, सरकारी सम्पत्ती को नुकसान पहुँचाना, लोगों के घरों के दरवाजों को तोड़ देना, गलियों में लगे बल्ब और ट्यूबराडों को नष्ट करना, पेट्रोल पम्प, ए टी एम आदि को क्षतिग्रस्त करना, किसी अच्छे-भले आदमी की कार को जला कर राख कर देना ही क्या धार्मिकता है? कितने शर्म की बात है यह ! राष्ट्र की सम्पत्ति नष्ट हो रही है। बेगुनाह लोग मर रहे है और राजमार्गों पर यातायात दुर्लभ हो रहा है। ऐसे में राज्य सरकार कर क्या रही है? प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाये रखना, अशान्ति की स्थिति में त्वरित कार्यवाही करके पुनः स्थिति को सामान्य करना राज्य सरकार का ही दायित्व है मगर किसी समुदाय विशेष के हितों का नारा लगवा कर समाज को धर्म के नाम पर बाँटने वाले ये "नेतागण" भारत के नागरिकों का हित नहीं सोंच पाते हैं तो फिर जनता-जनार्दन इन पर विश्वास कैसे करे? मैंने अपनी आखों से देश का विभाजन का दौर तो नहीं देखा परन्तु अहसास करता हूँ कि कुछ ऐसा ही रहा होगा! लगता है कि मैं साठ-बासठ साल पहले के युग में पहुँच गया हूँ या फिर किसी जंगल में। वैसे कहते हैं कि 'जंगलराज ' के भी कुछ कायदे -कानून होते हैं परन्तु यहाँ तो ..........
क्या मेरे देश को किसी कि नज़र लग गयी है ?