Wednesday 22 October, 2008

अन्ततः गुंडा गिरफ्तार हुआ ....

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे ) द्वारा उत्तर भारतीयों पर हमले के मामले में रत्नागिरी में मनसे प्रमुख 'राज ठाकरे' को अन्ततः गिरफ्तार कर ही लिया गया, यद्यपि बाद में बांद्रा की मजिस्ट्रेट अदालत ने उसे जमानत दे दी । कदाचित लोकसभा में जो हंगामा हुआ उसी का दबाव रहा हो यह ! वैसे राज ठाकरे ने राज्य सरकार को सीधे चुनौती दी थी । उसने यह भी कि विलासराव देशमुख की सरकार अहिन्सा की भाषा नहीं सुनती । राज ठाकरे का जुर्म अत्यन्त संगीन है, वह देश के संविधान की लगातार अवहेलना / अपमान कर रहा है अतः उसे कड़ी से कडी सज़ा मिलनी चाहिए जिससे पुनः कोई भी संविधान की अवज्ञा न कर सके । वैसे यदि यही कार्यवाही राज्य सरकार पहले ही कर लेती तो मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा हुए हिंसक हमले का शिकार होने से बहुत से युवकों को बचाया जा सकता था ।

यह राष्ट्रीय एकता-अखंडता का ही सवाल नहीं है, बल्कि सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था का तकाजा भी है कि कोई भी अव्यवस्था या अराजकता जब हद पार करती है, तो सरकार का दायित्व यह है कि वह तत्काल उस पर रोक लगाए। अगर राज्य सरकार इस मामले में लापरवाही बरतती है, तो यह दायित्व केंद्र सरकार का है कि ऐसी किसी भी अव्यवस्था पर वह मूक दर्शक बनकर न रहे । सरकार को इस पर गंभीर रुख अपनाना चाहिए, जिससे कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाए। परन्तु यह पूरा प्रकरण यह सिद्ध करता है कि हमारे नेतागण अपनी सत्ता-लिप्सा में कुर्सी से आगे सोंच नहीं पाते हैं फिर वे इतिहास की त्रासदियों से भला क्या सबक सीखेंगे ?