Wednesday 3 December, 2008

जीत तो बाँयें हाथ का खेल है .....

आतंकवादियों के इस हमले में अंतत: जीत हमारी ही हुई। आतंकवादी मारे गए, एक को जीवित भी पकडा गया । ताज होटल के बाहर खड़ी भीड़ ने 'भारत माता की जय' के नारे लगाकर और तिरंगा लहरा कर इस जीत का जश्न भी मनाया था। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत मंहगी पड़ी यह जीत हमें ! हमारे सैन्य बलों के जवान शहीद हो गए, निरपराध व्यक्तियों को जान गंवानी पड़ी, सैकड़ों घायल भी हुए। तो क्या इस जीत में भी कहीं न कहीं हमारी हार छिपी है ? नहीं, जवानों का शहीद होना, निरपराध नागरिकों का मारा जाना हार नहीं है। यह तो कीमत है जो चुकानी पड़ती है अपने आप को सिद्ध करने के लिए। अपने मूल्यों, अपने आदर्श की रक्षा के लिए। हम जीत तो गए, लेकिन यह भी सिद्ध हो गया है कि सारी चेतावनियों के बावजूद हम इस हमले का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं थे। जबकि हमारी खुफिया एजंसियों ने संभावित हमले की आशंका जता दी थी। हमारी लापरवाही जग - जाहिर हो गई ।

आखिर दोषी कौन है इसके लिए ? क्या दोषी को सजा नहीं मिलनी चाहिए? आतंकवादी हमला हमारे ही देश पर हुआ , बार-बार हुआ परन्तु आज तक हमनें कोई सबक नहीं सीखा । सच्चाई यही है और जान-माल का अत्यधिक नुकसान होने का कारण भी यही है। यूँ तो इसके कई कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन प्रमुख कारण है हमारी राजनीतिक संस्कृति ! जिसका एकमात्र उद्देश्य है सत्ता पाना और सत्ता में बने रहना। वस्तुतः गृह मंत्री का इस्तीफा मात्र, समस्या का समाधान नहीं है वरन जरूरत है हमारी राजनीतिक संस्कृति को बदलने की । हमें चाहिए कि राजनीति को राष्ट्र-हित पर हावी न होने दें, अब राजनीतिक नफा नुकसान को भुलाकर राष्ट्रीय हित में सोचने एवं निर्णय लेने की आवश्यकता है। संकल्प लें - राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि मानने का ! फिर मुकाबला हम चुटकियों में जीत लेगें बगैर किसी नुकसान विशेष के ! हमारे ऋषियों ने तो बहुत पहले ही ' 'अथर्व-वेद ' में कहा है " कृतं में दक्षिणे हस्ते , जयो मे सव्य आहितः " अर्थात् मेरा पुरुषार्थ मेरे दाहिनें हाथ में है तो जीत बाँयें हाथ का खेल है .....!

Tuesday 2 December, 2008

खाला का घर नाहिं ....




मुम्बई पर आतंकवादी हमले के बाद यही लगता है कि हमारा राष्ट्र 'भारत' एक दीन-हीन, असहाय और असुरक्षित देश है जहाँ पर आतंकवादी जब जी करता है , जहाँ जी करता है वहाँ , अपनी खाला का घर समझ कर "निःशंकाश्च निरापदः" हो कर आ जाते हैं । वस्तुतः देश के दुश्मनों को पूर्ण विश्वास हो चुका है कि भारत के नेतागण उन्हें समाप्त करने का साहस ही नहीं रखते हैं । वोट बैंक की राजनीति के कारण राष्ट्रीय हितों की लगातार अवहेलना की जा रही है ।( 'आमची मुम्बई' के नाम पर उत्पात मचाने वाले गुंडों को अक्ल आयेगी क्या ? )

हम इजरायल से सबक सीख सकते हैं । आखिर कारण क्या है कि एक छोटा सा देश आतंकवादियों को दुत्कारे रहता है ? क्या कारण है कि आतंकवादी वहाँ जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है ? भारत भी जब आतंकवादियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने लगेगा तो ये नृशंस हत्यारे स्वतः भयाक्रान्त हो कर अपनी ही माँ के गोद में जा छुपेंगे और दोज़खनशीं हो जायेंगे । आतंकवादियों , उनके मददगारों और उनके हमदर्दों के लिये 'मानवाधिकार' की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए । याद रहे हत्यारे का मददगार भी हत्यारा ही कहा जाता है , हत्यारा ही माना जाता है ।

सन्त कबीरदास नें यहाँ पहले ही कह दिया था - 'यह तो घर है प्रेम का , खाला का घर नाहिं' । यहाँ जो प्रेम से आता है उसे हम गले से लगा लेते है , हम पूरी दुनिया में प्रेम बाँटते । और अब हम सभी आतंकवादियों को आगाह किये देते हैं कि -
" अग्नि परीक्षा के लिये कदम बढा दिये हैं हमनें ,
तुम्हारे आग लगाने का शुक्रिया ....
गाण्डीव की प्रत्यंचा को फिर से चढाया है हमनें ,
तुम्हारे तीर चलाने का शुक्रिया ....."

Monday 1 December, 2008

अब पछ्ताये होत क्या ......

एक खबर के अनुसार आतंकी हमले के लगभग एक सप्ताह पूर्व, 19 नवम्बर को एक खुफ़िया एजेंसी ने एक "टॉप सीक्रेट" ( अत्यन्त गुप्त ) सूचना भेजी थी कि मुम्बई पर हमला समुद्र के रास्ते से किये जानें की योजना बनायी जा रही है । यह भी कहा गया था कि हमला कुछ ही दिनों में हो सकता है । खुफ़िया सूचना में यहाँ तक कहा गया था कि हमलावर मछुवारों के ट्रालर में आयेंगे । देखा जाए तो सूचना सही भी निकली ।

यह भी पता चला है कि यह सूचना राष्ट्रीय सूचना परिषद् के सचिवालय तक पहुँचा दी गई थी तत्पश्चात् नेवी और कोस्ट गार्ड को भी इसके बारे में सूचित कर दिया गया था । महाराष्ट्र को भी सलाह के रूप में यह खबर पहुँचाई गई थी मगर लगता यह है कि सूचना की गम्भीरता को नज़र-अंदाज़ कर दिया गया, अब स्पष्टीकरण दिये जा रहें हैं कि इस प्रकार की सूचनाएं तो अक्सर आती रहती हैं । तर्क देनें के लिये तो यह भले ही ठीक लगे पर ऐसी गम्भीर सम्भावनाओं को क्या नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है ? अगर हम सतर्क होते तो क्या यह मामला आगे बढ पाता ? हमें यह देखना है अब कि क्या भविष्य में हमारी सतर्कता बढेगी ? या हम गम्भीर " संभावनाओ " को इसलिये नज़र-अंदाज़ कर देंगे क्योंकि वह महज़ संभावनाएं हैं ?

Wednesday 22 October, 2008

अन्ततः गुंडा गिरफ्तार हुआ ....

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे ) द्वारा उत्तर भारतीयों पर हमले के मामले में रत्नागिरी में मनसे प्रमुख 'राज ठाकरे' को अन्ततः गिरफ्तार कर ही लिया गया, यद्यपि बाद में बांद्रा की मजिस्ट्रेट अदालत ने उसे जमानत दे दी । कदाचित लोकसभा में जो हंगामा हुआ उसी का दबाव रहा हो यह ! वैसे राज ठाकरे ने राज्य सरकार को सीधे चुनौती दी थी । उसने यह भी कि विलासराव देशमुख की सरकार अहिन्सा की भाषा नहीं सुनती । राज ठाकरे का जुर्म अत्यन्त संगीन है, वह देश के संविधान की लगातार अवहेलना / अपमान कर रहा है अतः उसे कड़ी से कडी सज़ा मिलनी चाहिए जिससे पुनः कोई भी संविधान की अवज्ञा न कर सके । वैसे यदि यही कार्यवाही राज्य सरकार पहले ही कर लेती तो मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा हुए हिंसक हमले का शिकार होने से बहुत से युवकों को बचाया जा सकता था ।

यह राष्ट्रीय एकता-अखंडता का ही सवाल नहीं है, बल्कि सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था का तकाजा भी है कि कोई भी अव्यवस्था या अराजकता जब हद पार करती है, तो सरकार का दायित्व यह है कि वह तत्काल उस पर रोक लगाए। अगर राज्य सरकार इस मामले में लापरवाही बरतती है, तो यह दायित्व केंद्र सरकार का है कि ऐसी किसी भी अव्यवस्था पर वह मूक दर्शक बनकर न रहे । सरकार को इस पर गंभीर रुख अपनाना चाहिए, जिससे कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाए। परन्तु यह पूरा प्रकरण यह सिद्ध करता है कि हमारे नेतागण अपनी सत्ता-लिप्सा में कुर्सी से आगे सोंच नहीं पाते हैं फिर वे इतिहास की त्रासदियों से भला क्या सबक सीखेंगे ?

Wednesday 6 February, 2008

मनसे का गुंडाराज़

'आमची महाराष्ट्र' के नाम पर राज ठाकरे की पार्टी 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना' के समर्थकों द्वारा जारी हिंसा , क्षेत्रवाद की कटारी से राष्ट्र को विखण्डित करने का एक कुत्सित प्रयास है।इन उन्मादी लोगों को न तो देश का इतिहास ज्ञात है और न ही भूगोल।
क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रसित ये विघटनवादी तत्व जिन्हें "भइये" कह कर अपने से बाहरी मानते हैं उन्हीं भैय्या लोगों ने कभी 'नाना साहब पेशवा' या फिर 'रानी लक्ष्मीबाई' के साथ अपने प्राणों को उत्सर्ग किया था । महाराष्ट्र के इन असमाजिक तत्वों को कदाचित् यह भी याद नहीं होगा कि छत्रपति शिवाजी का राजतिलक करने से जब महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने इन्कार कर दिया था तब इन्हीं "भइया" के पूर्वजों ने अपने रक्त से उस वीर मराठा का राज्याभिषेक किया था । शिवाजी का सुयश जन-जन तक पहुँचाने वाले महाकवि 'भूषण' उत्तर प्रदेश ( कानपुर ) के ही थे। मुगल सिपहसालार से शम्भाजी के प्राण बचानेवाला पुरोहित 'तीर्थराज प्रयाग' ( इलाहाबाद ) का था ।

क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रस्त उन्मादियों ने ओछी टिप्पणी करते समय यह भी नहीं सोंचा कि उत्तर प्रदेश के निवासियों को हिन्दुस्तानी भी कहा जाता है । 'आत्माराम गोविन्द खेर' उत्तर प्रदेश में स्पीकर रह चुके हैं । उत्तर प्रदेश के निवासियों ने तो इन्हें कभी भी बाहरी नहीं माना । सन् 1916 ई० के कॉग्रेस अधिवेशन में लखनऊ आने पर 'बाल गगांधर तिलक' को जिन्होंने अपने कंधों पर उठाया था वह भी "भइये" ही थे और इन भैय्या लोगों ने कभी भी 'बाल गगांधर तिलक' को बाहरी तो नहीं समझा ।

आज जब इंटरनेट एवम् संचार के अन्य माध्यमों से 'ग्लोबल विलेज' की बात हो रही है तब क्या राज ठाकरे, बाला नन्दगावोकर, शिशिर शिंदे, वसन्त गीले इत्यादि उन्मादियों को यह फिर से याद दिलाना पड़ेगा कि "आमची मुम्बई" को कभी पुर्तगाल के राजा ने अपनी बेटी कैथरीन की शादी के समय इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय को दहेज़ में दिया था तथा कालान्तर में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे 'पट्टे' पर ले लिया था । याद रहे - यह मुम्बई हमारी भी है, हमारे पूरे देशवासियों की है ।

Monday 28 January, 2008

वन्दे मातरम्....

'वन्दे मातरम्' गीत के पहले दो अनुच्छेद सन् 1876 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में लिखे थे। इन दोनों अनुच्छेदों में किसी भी देवी -देवता की स्तुति नहीं है , इनमें केवल मातृ-भूमि की वन्दना है । सन् १८८२ ई० में जब उन्होंने 'आनन्द- मठ' नामक उपन्यास बॉग्ला भाषा में लिखा तब इस गीत को उसमें सम्मिलित कर लिया तथा उस समय उपन्यास की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने इस गीत का विस्तार किया परन्तु बाद के सभी अनुच्छेद बॉग्ला भाषा में जोड़े गए। इन बाद के अनुच्छेदों में देवि दुर्गा की स्तुति है ।
सन् १८९६ ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है।तत्र दिनांक- ०७ सितम्बर सन् १९०५ ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक -२४ जनवरी सन् १९५० ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।


वन्दे मातरम् !
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्

सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!

Saturday 26 January, 2008

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ....

जय हिंद ! आज गणतंत्र दिवस है । आप सभी को बधाई । खेद है कि अस्वस्थ होने के कारण बहुत दिनों के बाद आप सब से रु -ब - रु हो रहा हूँ । आइये , एक बार फिर से राष्ट्र को नमन करें । अपने आन -बान - शान के प्रतीक तिरंगे को याद कर लें ।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ........

अपने राष्ट्र ध्वज में तीन रंग होने के कारण इसे तिरंगा भी कहा जाता है । इसमें समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं जिसमे गहरा केसरिया रंग सबसे ऊपर ,सफ़ेद रंग बीच में तथा हरा रंग सबसे नीचे है । सफ़ेद पट्टी के बीचों बीच में नीले रंग का चक्र है । इस चक्र का प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है । इस चक्र का व्यास सफ़ेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर है तथा इस में चौबीस तीलियाँ हैं । राष्ट्र ध्वज की लम्बाई - चौड़ाई का अनुपात ३ :२ है । भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का यह प्रारूप तत्र दिनांक -२२ जुलाई , सन् १९४७ ई को अपनाया था ।

डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन , जो भारत के प्रथम उप - राष्ट्रपति बने , उन्होंने राष्ट्र ध्वज के रूप में अपनाये जाने वाले इस तिरंगे का सम्पूर्ण अर्थ बताते हुए कहा - केसरिया रंग की पट्टी हमारे कार्य के प्रति उत्साह एवं समर्पण की भावना को प्रदर्शित करता है । बीच का सफ़ेद रंग प्रकाश का प्रतीक है , जो सच्चाई के मार्ग को दिखाता है और हमारे अच्छे आचरण का प्रतीक है । हरा रंग हमारे देश की मिट्टी से हमारे संबंध को प्रकट करता है , यह हमारे देश के हरे -भरे पौधों से हमारे संबंध को दर्शाता है जिस पर सभी का जीवन निर्भर है तथा सफ़ेद पट्टी के मध्य में बने नीले रंग का चक्र हमारी गति , प्रगति का द्योतक है । यह शांतिपूर्वक परिवर्तन का भी सूचक है ।

सरकारी तौर पर जो राष्ट्र ध्वज प्रयोग किया जाता है अमूमन वह खादी का बना होता है । ( कभी -कभी`रेशम ` का भी प्रयोग होता है) । भारतीय ध्वज संहिता ( जो कि तत्र दिनांक -२६ जनवरी सन् २००२ ई० से लागू है ) के अनुसार आम नागरिक , निजी संस्थाओ तथा शिक्षण संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है परन्तु राष्ट्रीय प्रतिष्टा के अनादर की रोकथाम तथा इस विषय से संबंधित अन्य व्यवस्थाओं का पालन करना होगा । राष्ट्र ध्वज को फहराने के नियम का पालन न करना दंडनीय अपराध के तहत आता है ।
शोक के समय राष्ट्र ध्वज को आधा झुकाया जाता है परन्तु स्वतन्त्रता दिवस , गणतंत्र दिवस आदि राष्ट्रीय पर्व के दौरान यदि ऐसी घटना घटती है तो राष्ट्रध्वज को झुकाना वर्जित है । यदि इन दिनों किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु होती है तो मात्र उस इमारत या घर पर ध्वज को झुकाया जा सकता है लेकिन शव के उस घर या इमारत से निकलने के बाद फिर से ध्वज फहरा दिया जाता है । संबंधित व्यक्ति की अर्थी या ताबूत पर ध्वज को डाला जाता है लेकिन न तो राष्ट्रध्वज को जलाया जा सकता है और न ही उसे दफनाया जा सकता है ।

अपना राष्ट्रध्वज उत्तरी एवम् दक्षिणी ध्रुव पर ही नहीं वरन विश्व की सबसे ऊँची चोटी माउन्ट एवरेस्ट पर भी फहराया जा चुका है । सन् १९७१ ई० में अपोलो -१५ के माध्यम से यह अंतरिक्ष में भी यह जा पहुँचा पुनः विंग कमांडर राकेश शर्मा ने अपनी अंतरिक्ष उड़ान में इसे फिर से लहराया ।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ...
झंडा ऊँचा रहे हमारा .....

जय हिंद ...........