Tuesday 2 December, 2008

खाला का घर नाहिं ....




मुम्बई पर आतंकवादी हमले के बाद यही लगता है कि हमारा राष्ट्र 'भारत' एक दीन-हीन, असहाय और असुरक्षित देश है जहाँ पर आतंकवादी जब जी करता है , जहाँ जी करता है वहाँ , अपनी खाला का घर समझ कर "निःशंकाश्च निरापदः" हो कर आ जाते हैं । वस्तुतः देश के दुश्मनों को पूर्ण विश्वास हो चुका है कि भारत के नेतागण उन्हें समाप्त करने का साहस ही नहीं रखते हैं । वोट बैंक की राजनीति के कारण राष्ट्रीय हितों की लगातार अवहेलना की जा रही है ।( 'आमची मुम्बई' के नाम पर उत्पात मचाने वाले गुंडों को अक्ल आयेगी क्या ? )

हम इजरायल से सबक सीख सकते हैं । आखिर कारण क्या है कि एक छोटा सा देश आतंकवादियों को दुत्कारे रहता है ? क्या कारण है कि आतंकवादी वहाँ जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है ? भारत भी जब आतंकवादियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने लगेगा तो ये नृशंस हत्यारे स्वतः भयाक्रान्त हो कर अपनी ही माँ के गोद में जा छुपेंगे और दोज़खनशीं हो जायेंगे । आतंकवादियों , उनके मददगारों और उनके हमदर्दों के लिये 'मानवाधिकार' की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए । याद रहे हत्यारे का मददगार भी हत्यारा ही कहा जाता है , हत्यारा ही माना जाता है ।

सन्त कबीरदास नें यहाँ पहले ही कह दिया था - 'यह तो घर है प्रेम का , खाला का घर नाहिं' । यहाँ जो प्रेम से आता है उसे हम गले से लगा लेते है , हम पूरी दुनिया में प्रेम बाँटते । और अब हम सभी आतंकवादियों को आगाह किये देते हैं कि -
" अग्नि परीक्षा के लिये कदम बढा दिये हैं हमनें ,
तुम्हारे आग लगाने का शुक्रिया ....
गाण्डीव की प्रत्यंचा को फिर से चढाया है हमनें ,
तुम्हारे तीर चलाने का शुक्रिया ....."

3 comments:

रंजू भाटिया said...

सही कहा आपने

Sumit said...

सहमत हूँ आपसे !

Shrilekha aka Chandani said...

absolutely true...its about time we did something about these terrorists. Sach me unki himmat nahi honi chahiye fir humla karne ki..aisa kuch karna hai.