Sunday 17 May, 2009

जय हो मतदाता ...! जय हो लोकतंत्र .....!!


लोकतंत्र की जीत पुनः हुई। एक बार पुनः मतदाता ने सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में राजा वही है। सिद्ध कर दिया कि लोकतंत्र में वोट की चोट भी घातक होती है। जो भी जनता की अवहेलना करता है, उसकी हवा निकाल देनें में 'लोकतंत्र का राजा' अभी भी सक्षम है। मतदाता नें सिद्ध कर दिया कि "हम भारत के लोग" समझदार हैं तथा सही समय पर सही निर्णय लेना जानते हैं। इस जनादेश का पूर्वानुमान लगानें में बड़े -बड़े राजनीतिक विश्लेषक ( और तथाकथित ज्योतिषी भी ) धराशाई हो गए। ऋषिओं ने सत्य ही कहा है " नृपस्य चित्तम् ..... दैवो न जानति कुतो मनुष्यः ।।"

इस जनादेश से मतदाता ने क्षेत्रीयता पर भी लगाम कसा। जयललिता, चन्द्र बाबू नायडू, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान जैसे नेता अब किंग-मेकर की स्थिति में नहीं रहे . अब जनता स्वयं ही किंग-मेकर भी है और किंग तो है ही। वस्तुतः छोटे दलों का दम्भ ही उन्हें ले डूबा। मायावती का दर्प भी विदीर्ण हो गया ( अब इस लोक सभा में वह प्रधान - मंत्री बनने की शर्त नहीं थोप सकतीं )। वामपंथियों ने भयादोहन करनें की राजनीति कर के मतदाता का विश्वास खो दिया। जनता ने यह भी सिद्ध कर दिया कि वह लालकृष्ण आडवानी को न तो मजबूत नेता मानती है और न ही भारतीय जनता पार्टी के द्वारा निर्णायक सरकार चला पाने पर उसे तनिक भी भरोसा है।

कांग्रेस ने "जय हो" के नारे के साथ अपनें चुनाव अभियान का श्रीगणेश किया था अब संप्रग को चाहिए कि वह इस जनादेश का आदर करे और विकास के पथ पर त्वरित गति से राष्ट्र को आगे बढाती जावे। राजनीति के नाम पर जनता से किसी भी प्रकार की गडबडी से बचे तभी ठीक रहेगा अन्यथा वोट की चोट घातक ही नहीं संघातक भी होती है। याद रहे - जय मतदाता, जय लोकतंत्र, जय हिन्द ...!

2 comments:

Sumit said...

जय हो, जय हो, जय हो लोकतंत्र की !

राजन् said...

आपका कहना सही है। जनता ने न दक्षिणपंथ
को स्वीकार किया और न वामपंथ को! क्षेत्रीय दलों का अहंकार भी तोड़ डाला। अब कांग्रेस के सामने देशहित में काम करने की चुनौती है।